农业发展对阿尔瓦尔地区自然、经济和生态环境的影响。

Ramesh Chandra Kumawat
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न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है, तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है। सन् 1990 के बाद से विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार आज काफी बढ़ा है। जैविक खेती वह सदाबहार पारंपरिक कृषि पद्धति है, जो भूमि का प्राकृतिक स्वरूप बनाने वाली क्षमता को बढ़ाती है। जैविक खेती किसानों के स्वावलम्बन की अभिनव योजना है। इसका मुख्य उदेश्य किसानों की आय को दोगुना कर जैविक खेती का प्रशिक्षण, प्रोत्साहन, तथा देश में किसानों को स्वावलम्बी बनाना है। 1“ अलवर के कृषि उत्पादों का स्थानीय रूप से उपभोग किया जाता है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्यात किया जाता है, जिससे इसके आर्थिक महत्व को बढ़ावा मिलता है। अलवर की सरकार ने पहल और सब्सिडी के माध्यम से स्थायी कृषि को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया है, किसानों को जैविक खेती तकनीकों और जल संरक्षण विधियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया है। इस शोध पत्र का उद्देश्य अलवर में कृषि विकास, जैव विविधता और सतत विकास के बीच संबंधों की जांच करना है, जिसमें किसानों और क्षेत्र के लिए आर्थिक लाभ को अधिकतम करते हुए पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए कृषि प्रथाओं को अनुकूलित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है मुख्य शब्द- कृषि, कृषि केंद्र , भौतिक, आर्थिक, कृषि विकास, जैव विविधता, उपजाऊ मिट्टी आदि |","PeriodicalId":499221,"journal":{"name":"International Journal of Multidisciplinary Research Configuration","volume":"109 1-2","pages":""},"PeriodicalIF":0.0000,"publicationDate":"2024-01-28","publicationTypes":"Journal Article","fieldsOfStudy":null,"isOpenAccess":false,"openAccessPdf":"","citationCount":"0","resultStr":"{\"title\":\"Impact of agricultural development on physical, economic and ecological environment in Alwar region.\",\"authors\":\"Ramesh Chandra Kumawat\",\"doi\":\"10.52984/ijomrc4104\",\"DOIUrl\":null,\"url\":null,\"abstract\":\"भारत के राजस्थान में अलवर क्षेत्र अपनी उपजाऊ मिट्टी और अनुकूल जलवायु के कारण एक महत्वपूर्ण कृषि केंद्र है। यह सदियों से गेहूं, सरसों, बाजरा और सब्जियों जैसी फसलों का उत्पादन करने वाला एक प्रमुख कृषि केंद्र रहा है। इस क्षेत्र ने उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने के लिए 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摘要

भारत के राजस्थान में अलवर क्षेत्र अपनी उपजाऊ मिट्टी और अनुकूल जलवायु के कारण एक महत्वपूर्ण कृषि केंद्र है। यहसदियों से गेहूं, सरसों、बाजरा और सब्जियों जैसी फसलोंका उत्पादन करने वाला एक प्रमुख कृषिकेंद्र हा है। इस क्षेत्र ने उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों औरप्रौद्योगिकियों को अपनाते हुए अपनीकृषि प्धतियों को विकसित किया है। यह जैविक खेती और जल संरक्षण विधियों जैसी अपनी नवीन प्रथाओ के लिए जना जााता है、जिन्होंने पानी की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए कृषि क्षेत्र को बनाए रखने में मदद की है। जैविक खेती के विषय एक शोध में कहाहै कि ” जैविक खेती कृषि की वह विधा है,जिसमें मृदा को स्वस्थ व जीवन्तरखते हुए केवल जैव अवषि्ट、जैविक या जीवाणु खाद के प्रयोग से प्रकृति के साथ समन्वय रखकर टिकाऊ फसलका उत्पादन किया जाता है। जैविक खेती (ऑर्गनेिक)फार्मिंग) कृषिकी वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकोंके अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारत है、तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने केलिये फसल चक्र, हरी खाद、कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है। सन् 1990 के बाद से विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार आज काफी बढ़ा है। जैविक खेती व हसदाबार पांरपरिक कृषि पद्धति है、जो भूमि का प्राकृतिक स्वरूप बनाने वाली क्षमता को बढ़ाती है। जैविक खेती किसानों के स्वावलम्बन की अभिनव योजना है। इसका मुख्य उदेश्य किसानों की आय को दोगुना कर जैविक खेती का प्रशिक्षण,प्रोत्साहन, तथा देश में किसानों को स्वावलम्बी बनाना है। 1“ अलवर के कृषि उत्पादों का स्थानीय रूप से उपभोग किया जाता है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्यात किया जाता है,जिसे इसके आर्थिक महत्व को बढ़ावा मिलता है। अलवर कीसरकार ने पल हऔर सब्सिडीके माध्यम से स्थायीकृषिको सक्रिय रूपसे बढ़ावादिया है、किसानों को जैविक खेती तकिनीकों और जल संरक्षण विधियों को अपनाने केलिए प्रोत्साहित किया है। इस शोध पत्र का उद्देश्य अलवर मंे कृषि विकास、जैव01 _COPYिविधता और सतत विकास के बीच संबंधों की जांच करना है、जिसमें किसानों और क्षेत्र के लिए आर्थिक लाभ को अधिकतम करते हुए पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए कृषि प्रथाओं को अनुकूलित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है मुख्य शब्द- कृषि,कृषि केंद्र , भौतिक, आर्थिक, कृषि विकास, जैव विविधता, उपजाऊ मिट्टी आदि |
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Impact of agricultural development on physical, economic and ecological environment in Alwar region.
भारत के राजस्थान में अलवर क्षेत्र अपनी उपजाऊ मिट्टी और अनुकूल जलवायु के कारण एक महत्वपूर्ण कृषि केंद्र है। यह सदियों से गेहूं, सरसों, बाजरा और सब्जियों जैसी फसलों का उत्पादन करने वाला एक प्रमुख कृषि केंद्र रहा है। इस क्षेत्र ने उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों और प्रौद्योगिकियों को अपनाते हुए अपनी कृषि पद्धतियों को विकसित किया है। यह जैविक खेती और जल संरक्षण विधियों जैसी अपनी नवीन प्रथाओं के लिए जाना जाता है, जिन्होंने पानी की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए कृषि क्षेत्र को बनाए रखने में मदद की है। जैविक खेती के विषय एक शोध में कहाहै कि ” जैविक खेती कृषि की वह विधा है, जिसमें मृदा को स्वस्थ व जीवन्त रखते हुए केवल जैव अवषिष्ट, जैविक या जीवाणु खाद के प्रयोग से प्रकृति के साथ समन्वय रखकर टिकाऊ फसल का उत्पादन किया जाता है। जैविक खेती (ऑर्गेनिक फार्मिंग) कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है, तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है। सन् 1990 के बाद से विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार आज काफी बढ़ा है। जैविक खेती वह सदाबहार पारंपरिक कृषि पद्धति है, जो भूमि का प्राकृतिक स्वरूप बनाने वाली क्षमता को बढ़ाती है। जैविक खेती किसानों के स्वावलम्बन की अभिनव योजना है। इसका मुख्य उदेश्य किसानों की आय को दोगुना कर जैविक खेती का प्रशिक्षण, प्रोत्साहन, तथा देश में किसानों को स्वावलम्बी बनाना है। 1“ अलवर के कृषि उत्पादों का स्थानीय रूप से उपभोग किया जाता है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्यात किया जाता है, जिससे इसके आर्थिक महत्व को बढ़ावा मिलता है। अलवर की सरकार ने पहल और सब्सिडी के माध्यम से स्थायी कृषि को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया है, किसानों को जैविक खेती तकनीकों और जल संरक्षण विधियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया है। इस शोध पत्र का उद्देश्य अलवर में कृषि विकास, जैव विविधता और सतत विकास के बीच संबंधों की जांच करना है, जिसमें किसानों और क्षेत्र के लिए आर्थिक लाभ को अधिकतम करते हुए पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए कृषि प्रथाओं को अनुकूलित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है मुख्य शब्द- कृषि, कृषि केंद्र , भौतिक, आर्थिक, कृषि विकास, जैव विविधता, उपजाऊ मिट्टी आदि |
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