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सौन्दर्यावधारणा के बदलते मानक: चित्रकला के विशेष संदर्भ में
भारतीय विचारधारा के अनुसार कला का एकमात्र उद्देश्य रसानुभूति है। यह सभी ललित कलाओं पर प्रयोज्य है। प्राचीन ललित कलाओं की सौन्दर्य-अवधारणा के मानक तत्वों का उल्लेख हमें विष्णुधर्मोत्तर पुराण, के चित्रसूत्र, समरागंणसूत्रधार तथा कामसूत्र में मिलता है, परन्तु आधुनिक युग में ललित कलाओं के मानकों में परिवर्तन होने से सौन्दर्य की अवधारणा में भी परिवर्तन हो गया है, क्योंकि सौन्दर्य की अवधारणा और ललित कलाएँ परस्पर आश्रित है । आधुनिक युग में वर्तना के क्रम, षडंग, रूप, आकार, आदि के मानक बदल गये है। आज रूप, रूप न रहकर उसका विरूपण हो गया है, साथ ही दृश्य रूपों में कान्सेप्च्युअल कला आ गई है, जिसमें इंस्टालेशन, परफॅार्मेंस, न्यू मीडिया आर्ट, आदि आ गये है। लेकिन फिर भी रसनिष्पत्ति की प्रक्रिया में कोई परिवर्तन नहीं आया है, रूप के विरूपण में भी भाव व रस की अनुभूति होती है।