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जैविक कृषि का कृषकों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव का अध्ययन (सतना जिले के विशेष संदर्भ में)
जैविक खेती कृषि की वह विधा है, जिसमें मृदा को स्वस्थ व जीवन्त रखते हुए केवल जैव अवषिष्ट, जैविक या जीवाणु खाद के प्रयोग से प्रकृति के साथ समन्वय रखकर टिकाऊ फसल का उत्पादन किया जाता है। जैविक खेती (ऑर्गेनिक फार्मिंग) कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है, तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करती है। सन् 1990 के बाद से विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार आज काफी बढ़ा है। जैविक खेती वह सदाबहार पारंपरिक कृषि पद्धति है, जो भूमि का प्राकृतिक स्वरूप बनाने वाली क्षमता को बढ़ाती है। जैविक खेती किसानों के स्वावलम्बन की अभिनव योजना है। इसका मुख्य उदेश्य किसानों की आय को दोगुना कर जैविक खेती का प्रशिक्षण, प्रोत्साहन, तथा देश में किसानों को स्वावलम्बी बनाना है। जैविक खेती पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान है। संपूर्ण विश्व में बढ़ती हुई जनसंख्या एक गंभीर समस्या है, बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ भोजन की आपूर्ति के लिए मानव द्वारा खाद्य उत्पादन की होड़ में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए तरह-तरह की रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग, प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थो के बीच आदान-प्रदान के चक्र को (इकोलॉजी सिस्टम) प्रभावित करता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति खराब हो जाती है, साथ ही वातावरण प्रदूषित होता है तथा मनुष्य के स्वास्थ्य में गिरावट आती है।