None Dr. Bhavesh A. Prabhakar, None डॉ. गुरुदत्त पी. जपी
{"title":"भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों और इसरो के पीएसएलवी, जीएसएलवी प्रक्षेपकों की क्षमता की पृष्ठभूमि मे चंद्रयान -1, 2, 3 अभियानो की भूमिका का आकलन","authors":"None Dr. Bhavesh A. Prabhakar, None डॉ. गुरुदत्त पी. जपी","doi":"10.48175/ijarsct-13062","DOIUrl":null,"url":null,"abstract":"अंतरिक्ष विज्ञान में इंसान के सफलता से एक बात तो स्पष्ट हो गई है की इंसान वो सब कुछ कर सकता है, जो ना कभी किसी ने सोचा हो, ना कभी किसी ने देखा हो, ना कभी किसी ने किया हो ओर ना कभी किसी ने महसूस किया हो, वो सब कुछ जिसको हम सोचते हैं वो सब कुछ हम कर सकते हैं। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को मुख्य रूप से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के तहत निष्पादित किया जाता है। चंद्रयान-1, चंद्रमा के लिए भारत का पहला मिशन, 22 अक्टूबर 2008 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था। चंद्रयान-1 ने चंद्र सतह पर हाइड्रॉक्सिल और पानी के अणुओं की उपस्थिति और स्थायी सूर्य छाया क्षेत्र के क्रेटर के आधार में उप-सतह जल-बर्फ जमा की खोज की। चंद्रयान-3 का 23 अगस्त 2023 को चंद्र के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश पर उतरने से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला भारत विश्व का पहला देश बन गया है। चंद्रयान-3 मं एक लैंडर मॉड्यूल, प्रोपल्शन मॉड्यूल और एक रोवर शामिल है। विक्रम लैंडर पर लगे चेस्ट (ChaSTE) पेलोड से पता चलता हे की चंद्रमा की सतह का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस है, गहराई में जाने पर तापमान तेजी से गिरता है। रोवर पर मौजूद अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (ए.पी.एक्स.एस.) ने एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, आयरन जैसे प्रमुख अपेक्षित तत्वों के अलावा, सल्फर समेत दिलचस्प सूक्ष्म तत्वों की उपस्थिति की खोज की है। प्रारंभिक मूल्यांकन से संकेत मिलता है कि चंद्र सतह को घेरने वाला प्लाज्मा अपेक्षाकृत विरल है।","PeriodicalId":262446,"journal":{"name":"International Journal of Research in Science, Commerce, Arts, Management and Technology","volume":"2014 1","pages":"0"},"PeriodicalIF":0.0000,"publicationDate":"2023-09-30","publicationTypes":"Journal Article","fieldsOfStudy":null,"isOpenAccess":false,"openAccessPdf":"","citationCount":"0","resultStr":null,"platform":"Semanticscholar","paperid":null,"PeriodicalName":"International Journal of Research in Science, Commerce, Arts, Management and Technology","FirstCategoryId":"1085","ListUrlMain":"https://doi.org/10.48175/ijarsct-13062","RegionNum":0,"RegionCategory":null,"ArticlePicture":[],"TitleCN":null,"AbstractTextCN":null,"PMCID":null,"EPubDate":"","PubModel":"","JCR":"","JCRName":"","Score":null,"Total":0}
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Abstract
अंतरिक्ष विज्ञान में इंसान के सफलता से एक बात तो स्पष्ट हो गई है की इंसान वो सब कुछ कर सकता है, जो ना कभी किसी ने सोचा हो, ना कभी किसी ने देखा हो, ना कभी किसी ने किया हो ओर ना कभी किसी ने महसूस किया हो, वो सब कुछ जिसको हम सोचते हैं वो सब कुछ हम कर सकते हैं। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को मुख्य रूप से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के तहत निष्पादित किया जाता है। चंद्रयान-1, चंद्रमा के लिए भारत का पहला मिशन, 22 अक्टूबर 2008 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था। चंद्रयान-1 ने चंद्र सतह पर हाइड्रॉक्सिल और पानी के अणुओं की उपस्थिति और स्थायी सूर्य छाया क्षेत्र के क्रेटर के आधार में उप-सतह जल-बर्फ जमा की खोज की। चंद्रयान-3 का 23 अगस्त 2023 को चंद्र के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश पर उतरने से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला भारत विश्व का पहला देश बन गया है। चंद्रयान-3 मं एक लैंडर मॉड्यूल, प्रोपल्शन मॉड्यूल और एक रोवर शामिल है। विक्रम लैंडर पर लगे चेस्ट (ChaSTE) पेलोड से पता चलता हे की चंद्रमा की सतह का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस है, गहराई में जाने पर तापमान तेजी से गिरता है। रोवर पर मौजूद अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (ए.पी.एक्स.एस.) ने एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, आयरन जैसे प्रमुख अपेक्षित तत्वों के अलावा, सल्फर समेत दिलचस्प सूक्ष्म तत्वों की उपस्थिति की खोज की है। प्रारंभिक मूल्यांकन से संकेत मिलता है कि चंद्र सतह को घेरने वाला प्लाज्मा अपेक्षाकृत विरल है।